मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार जाति का प्रादुर्भाव श्री अजमीढ़ महाराजा से हुआ था। मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज के आदि पुरुष महाराज अजमीढ़ देव ने ब्रह्मा की 28 वीं पीढ़ी में जन्म लिया था। वे चन्द्रवंशीय थे। भगवत पुराण के अनुसार दुष्यंत से भरत, भरत से भूमन्यू, भूमन्यू से सुहौत्र, सुहोत्र से हस्ती की तीसरी पीढ़ी में अजमीढ़ हुए।
श्री अजमीढ़ जी महाराजा की जय
राजा हस्ती के येष्ठ पुत्र अजमीढ़ महान चक्रवर्ती राजा चन्द्रवंशी थे। इनके दो भाई पुरुमीढ़ व डिमीढ़ भी पराक्रमी राजा थे। महाराजा अजमीढ़ के दो रानियां सुयति व नलिनी थी। इनके गर्भ में बुध्ददिषु, ऋव, प्रियमेध व नील नामक पुत्र हुए। उनसे मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज का वंश आगे चला। अजमीढ़ ने अजमेर नगर बसाकर मेवाड़ की नींव डाली। महान क्षत्रिय राजा होने के कारण अजमीढ़ धर्म-कर्म में विश्वास रखते थे। वे सोने-चांदी के आभूषण, खिलौने व बर्तनों का निर्माण कर दान व उपहार स्वरुप सुपुत्रों को भेंट किया करते थे। वे उच्च कोटि के कलाकार थे। आभूषण बनाना उनका शौक था और यही शौक उनके बाद पीढ़ियों तक व्यवसाय के रुप में चलता आ रहा है। उन्होंने सर्वप्रथम स्वर्ण समाज को अपनाया था। कालान्तर में क्षत्रिय स्वर्णकार समाज उनके वंशज हैं। समाज के सभी व्यक्ति इनको आदि पुरुष मानकर अश्विनी शुक्ल पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा-कोजागिरि)को जयंती मनाते हैं। !!!! मैढ़ क्षत्रिय समाज स्वर्णकार नागपुर !!!!
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