Monday, 17 October 2016
Saturday, 15 October 2016
अजमीढ़ महाराजा हस्ती के ज्येष्ठ पुत्र थे जिन्होंने हस्तिनापुर बसाया था । द्विमीढ़ एवं पुरुमीढ़ दोनों अजमीढ़ के छोटे भाई थे
अजमीढ़ महाराजा हस्ती के ज्येष्ठ पुत्र थे जिन्होंने हस्तिनापुर बसाया था । द्विमीढ़ एवं पुरुमीढ़ दोनों अजमीढ़ के छोटे भाई थे चंद्रवंश की अट्टाइसवीं पीढ़ी में महाराजा अजमीढ़ का जन्म हुआ था । अजमीढ़ महाराजा हस्ती के ज्येष्ठ पुत्र थे जिन्होंने हस्तिनापुर बसाया था । द्विमीढ़ एवं पुरुमीढ़ दोनों अजमीढ़ के छोटे भाई थे । अजमीढ़ ज्येष्ठ होने के कारण हस्तिनापुर राजगद्दी के उत्तराधिकारी हुए । ऋग्वेद सूत्र विकास गं्रत में इनके एक और भाई होने का उल्लेख मिलता है जिसका नाम घोर था, किन्तु इसका उल्लेख अन्यत्र कहीं नहीं मिलता । अजमीढ़ की जन्म तिथि के बारे में किसी भी पुराण में उल्लेख नहीं मिलता तथापि उनके राज्यकाल के विषय में इतिहासकारों का अनुमान है कि ई.पू. 22 से ई.पू. 2 वर्ष में इनका राज्यकाल रहा है । महाराजा हस्ती के पश्चात् अजमीढ़ प्रतिष्ठानपुर/प्रयाग एवं हस्तिनापुर दोनों राज्यों के सम्राट हुए ।प्रारंभ में चंद्रवंशियों की राजधानी प्रयाग प्रतिष्ठानपुर/झूसी में ही थी । हस्तिनापुर बसाये जाने के बाद प्रमुख राज्यगद्दी हस्तिनापुर हो गई । इनके छोटे भाई द्विमीढ़ से बरेली के आसपास द्विमीढ़ नामक वंश चला । पुरुमीढ़ निःसंतान ही रहे । ब्रह्मांड पुराण के अनुसार अजमीढ़ मूलतः क्षत्रिय थे । पुराणों के अनुसार अजमीढ़ के तीन रानियां थीं- नलिनी, केाशिनी एवं धूमिनी । इन तीनों से अजमीढ़ के कई वंशोत्पादक पुत्र हुए । इन्होंने गंगा के उत्तरी एवं दक्षिणी दिशा में अपने राज्य का विस्तार किया । अजमीढ़ का नील नामक पुत्र उत्तर पांचाल शाखा राज्य का शासक हुआ, जिसकी राजधानी अहिच्छत्रपुर थी । वृहदसु नाम का पुत्र दक्षिण पांचाल का शासक हुआ जो गंगा नदी व चंबल नदी से दक्षिण में था ।उसकी राजधानी काम्पिलय थी । महाभारत के एक अध्याय में अजमीढ़ के चार रानियां का उल्लेख मिलता है, ये कैकयी, गान्धारी, विशाला तथा ऋता थी । अजमीढ़जी की चैथी पीढ़ी में राजस्व नाम का राजा हुआ । इसने सिंधु नदी के भूभाग पर अपना आधिपत्य जमाया । इसके पांच पुत्र हुए । ये पांचों पांचालिक नाम से प्रसिद्ध हुए । अजमीढ़ एक महा प्रतापी वंशकर राजा थे । इनके वंश में होने वाले अजमीढ़ वंशी कहलाये । महाभारत के वन पर्व में विदुर को अजमीढ़ वंशी कहा गया है । इसी पुराण में जहनु के वंश को भी अजमीढ़ वंशी कहा गया है । ब्रह्मपुराण के अनुसार अजमीढ़ की तीनों पत्नियों से अजमीढ़ वंश की तीन शाखाएं बनी । केषिनी के पुत्र ज से अजमीढ़ वंश चला । अन्य दो रानियों नीली व धूमिनी से भी दो पृथक वंश चले जो अजमीढ़ वंश नाम से ही प्रख्यात हुए । अजमीढ़ धूमिकी नाम की पत्नी से ऋत नामक पुत्र हुआ । ऋत के पुत्र संवरण और
संवरण के पुत्र कुरु से कौरव वंश प्रतिष्ठापित हुआ । वर्तमान मेरठ जिले की मवना तहसील के पश्चिम में गंगा और यमुना के मध्य के प्रदेश को हस्तिनापुर कहा गया है । महाराज हस्ती के जीवन काल की प्रमुख घटना यही मानी जाती है कि उन्होंने हस्तिनापुर का निर्माण करवाया । इसकी आंतरिक रचना अपने समय के सर्वश्रेष्ठ कलाकार मयदत्त नामक दानव ने की थी । प्राचीन समय में हस्तिनापुर न केवल तीर्थ स्थल ही रहा है वरन् देश का प्रमुख राजनैतिक एवं सामाजिक केन्द्र भी रहा है । इतिहास पुराण में हस्तिनापुर की भव्यता एवं समृद्धशाली होने के आख्यान मिलते हैं । कालान्तर में हस्तिनापुर कौरवों की राजधानी रहा जिसके लिये प्रसिद्ध कुरुक्षेत्र युद्ध हुआ । निचत्तु हस्तिनापुर का अंतिम राजा था । हस्तिनापुर के गंगा की बाढ़ में बह जाने और उसके राज्य पर टिड्डी दलों के भारी आक्रमण के कारण प्रयाग के वत्सक्षेत्र में शरण लेने पर विवश हुआ और कौशाम्बली को अपनी राजधानी बनाई । अजमीढ़ निःसंदेह पौरववंश के महान सार्वभौम सम्राट थे । कई एक साहित्यिक एवं ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर इस बात के संकेत मिलते हैं कि वर्तमान अजमेर जिसका प्राचीन नाम अजमेरु था, के संस्थापक अजमीढ़ ही थे । शरद पूर्णिमा/अश्विन शुक्ला 15 के दिन अजमीढ़ जयन्ति मनाने की परंपरा मैढ़ समाज में वर्षों से चली आ रही है । -राज.पत्रिका,जोधपुर, वि .पृ., 27.10.2015
श्रीमद्भाग्वता एवं विष्णु पुराण के अनुसार ब्रह्मा जी की वंशावली के राजा अजमीढ़ की पीढ़ी में कुरु राजा के नाम से सम्पूर्ण कुरुक्षेत्र जाना जाता है। कुरु एक अत्यंत प्रतापी राजा हुए हैं जो महाभारत में कौरवों के पितामह थे, उन्ही के नाम से कुरु प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक था।
मेड/मीढ़/मीढ़व साम्राज्य प्राचीन विश्व के महानतम साम्राज्यों में एक था विश्व इतिहास में ६२० ई ० पू ० मेड शासक अस्तायागस द्वारा नव अस्सुरियन साम्राज्य पर विजय प्राप्त कर आर्यों का पुनः शासन स्थापित किया था जिसके शासक चन्द्र वन्श के महाराजा अजमीढ़ के नाम पर उनके वंशज मीढ़ क्षत्रिय हुए थे जो कालान्तर मे मेड कहे गये तथा उनके प्रमुख स्थान् मीढ़या को माध्य देश अथवा मीडिया कहा गया मेदा या मीडिया साम्राज्य बेबीलोन के सहयोगी साम्राज्यों में से एक था जो आर्याव्रत के पश्चिम स्थानो मे एक था। जिसे मेड आर्य माद्रा भी कहते थे। ये आधुनिक ईरान के इलाके में केन्द्रित था। सन ५४९ में पार्स की प्रभुता स्थापित होने तक ये साम्राज्य बेबीलोन का सहयोगी रहा था। आधुनिक कुर्द तथा लूर लोग मीदि साम्राज्य को अपना पूर्ववर्ती मानते हैं किन्तु अभी भी यह एक व्यापक खोज का विषय है क्योंकि भारत में मेड क्षत्रिय एवं मेड राजपूत भी प्राचीन मेड साम्राज्य से जुड़ा हुआ मानते हैं और यह भी सही है की मेड आर्य थे कोई जन जाति विशेष नहीं थे प्रसिद्ध इतिहासकार हेरोदोतुस ने उन्हें आर्यन कहा है और उनकी छै जातियों में से एक जाति ब्राहमणों की थी जिसे मग ब्राहमण या मागी भी कहा गया है, जो मार्गी का अपभ्रंश है। मेड आर्य अजमीढ़ साम्राज्य जिसे एक्मेनिद एम्पायर कहा जाता है से प्रमुख्तय सम्वन्धित थे उनकी पोशाक भी पार्सिओ से भिन्न थी वह आर्य पोशाक धोती पहनते थे जबकि उन के सहयोगी पारसी कुर्ता पजामा पहनते थे।
राजा सुदास : सम्राट भरत के समय में राजा हस्ति हुए जिन्होंने अपनी राजधानी हस्तिनापुर बनाई। राजा हस्ति के पुत्र अजमीढ़ को पंचाल का राजा कहा गया है। राजा अजमीढ़ के वंशज राजा संवरण जब हस्तिनापुर के राजा थे तो पंचाल में उनके समकालीन राजा सुदास का शासन था।
राजा सुदास का संवरण से युद्ध हुआ जिसे कुछ विद्वान ऋग्वेद में वर्णित ‘दाशराज्य युद्ध’ से जानते हैं। राजा सुदास के समय पंचाल राज्य का विस्तार हुआ। राजा सुदास के बाद संवरण के पुत्र कुरु ने शक्ति बढ़ाकर पंचाल राज्य को अपने अधीन कर लिया तभी यह राज्य संयुक्त रूप से ‘कुरु-पंचाल’ कहलाया, परंतु कुछ समय बाद ही पंचाल पुन: स्वतंत्र हो गया।
राजा कुरु के नाम पर ही सरस्वती नदी के निकट का राज्य कुरुक्षेत्र कहा गया। माना जाता है कि पंचाल राजा सुदास के समय में भीम सात्वत यादव का बेटा अंधक भी राजा था। इस अंधक के बारे में पता चलता है कि शूरसेन राज्य के समकालीन राज्य का स्वामी था। दाशराज्य युद्ध में यह भी सुदास से हार गया था। इस युद्ध के बाद भारत की किस्मत बदल गई।
Tuesday, 11 October 2016
मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज के आदि पुरुष महाराज अजमीढ़ !!!! मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज नागपुर !!!!
मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार जाति का प्रादुर्भाव श्री अजमीढ़ महाराजा से हुआ था। मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज के आदि पुरुष महाराज अजमीढ़ देव ने ब्रह्मा की 28 वीं पीढ़ी में जन्म लिया था। वे चन्द्रवंशीय थे। भगवत पुराण के अनुसार दुष्यंत से भरत, भरत से भूमन्यू, भूमन्यू से सुहौत्र, सुहोत्र से हस्ती की तीसरी पीढ़ी में अजमीढ़ हुए।
श्री अजमीढ़ जी महाराजा की जय
राजा हस्ती के येष्ठ पुत्र अजमीढ़ महान चक्रवर्ती राजा चन्द्रवंशी थे। इनके दो भाई पुरुमीढ़ व डिमीढ़ भी पराक्रमी राजा थे। महाराजा अजमीढ़ के दो रानियां सुयति व नलिनी थी। इनके गर्भ में बुध्ददिषु, ऋव, प्रियमेध व नील नामक पुत्र हुए। उनसे मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज का वंश आगे चला। अजमीढ़ ने अजमेर नगर बसाकर मेवाड़ की नींव डाली। महान क्षत्रिय राजा होने के कारण अजमीढ़ धर्म-कर्म में विश्वास रखते थे। वे सोने-चांदी के आभूषण, खिलौने व बर्तनों का निर्माण कर दान व उपहार स्वरुप सुपुत्रों को भेंट किया करते थे। वे उच्च कोटि के कलाकार थे। आभूषण बनाना उनका शौक था और यही शौक उनके बाद पीढ़ियों तक व्यवसाय के रुप में चलता आ रहा है। उन्होंने सर्वप्रथम स्वर्ण समाज को अपनाया था। कालान्तर में क्षत्रिय स्वर्णकार समाज उनके वंशज हैं। समाज के सभी व्यक्ति इनको आदि पुरुष मानकर अश्विनी शुक्ल पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा-कोजागिरि)को जयंती मनाते हैं। !!!! मैढ़ क्षत्रिय समाज स्वर्णकार नागपुर !!!!
श्री अजमीढ़ जी महाराज की आरती
श्री अजमीढ़ जी महाराज की आरती
ओम जय अजमीढ़ हरे, स्वामी जय अजमीढ़ हरे।
भक्ति भाव संग पितृ पुरुष का, पूजन आज करें॥ ओम जय….
आश्विन शरद पूर्णमासी को, जन्मोत्सव मनता।
मेढ़ और मेवाड़ा कुल, मिल यशोगान करता॥ ओम जय….
आदि पुरुष कुल श्रेष्ठ, शिरोमणि, हस्तिनापुर जन्मे।
महाराजा हस्तोजी के तुम, येष्ठ पुत्र बने॥ ओम जय….
सौम्य, सरल, सुन्दर, स्वरुप लख, मन घट नेह भरे।
चंद्रवंश के कुल दीपकजी, मन आलोक करें॥ ओम जय….
पुरुमीढ़, द्विमीढ़ आपके, अनुज बन्धु कहलाये।
सुयति और नलिनी रानी के, हम अंशज बन आये॥ ओम जय….
शासक होकर स्वर्णकला का, तुमने मान किया।
स्वर्णकला में दक्ष, कला को, नव-नवरुप दिया॥ ओम जय….
करे आरती नित्य ही डावर जो मन ध्यान धरे।
पितृ पुरुष अजमीढ़ हमारे, दु:ख दारिद्र हरे॥ ओम जय….
श्री अजमीढ़ जी महाराज की जय-भारत माता की जय.....
आश्विन शरद पूर्णमासी को, जन्मोत्सव मनता।
मेढ़ और मेवाड़ा कुल, मिल यशोगान करता॥ ओम जय….
आदि पुरुष कुल श्रेष्ठ, शिरोमणि, हस्तिनापुर जन्मे।
महाराजा हस्तोजी के तुम, येष्ठ पुत्र बने॥ ओम जय….
सौम्य, सरल, सुन्दर, स्वरुप लख, मन घट नेह भरे।
चंद्रवंश के कुल दीपकजी, मन आलोक करें॥ ओम जय….
पुरुमीढ़, द्विमीढ़ आपके, अनुज बन्धु कहलाये।
सुयति और नलिनी रानी के, हम अंशज बन आये॥ ओम जय….
शासक होकर स्वर्णकला का, तुमने मान किया।
स्वर्णकला में दक्ष, कला को, नव-नवरुप दिया॥ ओम जय….
करे आरती नित्य ही डावर जो मन ध्यान धरे।
पितृ पुरुष अजमीढ़ हमारे, दु:ख दारिद्र हरे॥ ओम जय….
श्री अजमीढ़ जी महाराज की जय-भारत माता की जय.....
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आरती अजमीढ़ जी की
आरती अजमीढ़ जी की
आरती कीजै अजमीढ़ राजा की।
सेवा निरन्तर की अपने प्रजा की॥
महाराज हस्तीजी के घर जाए।
हस्तीनापुर के जनक गए बनाए॥
शरद पूर्णिमा का दिन भाग्यशाली।
मां सुदेशा के घर आयी खुशहाली॥
यशोधरा से जन्मे द्विमीढ़ पुरुमीढ़ भाई।
मैढ़ क्षत्रिय वंश की स्वर्ण ध्वजा लहराई॥
स्वर्णकारी कला का शुरु किया काम।
जिससे गौरवान्वित हुआ समाज का नाम॥
अजयमेरु में एक नगर बसाया।
स्वर्ण बंधुओं के कार्य क्षेत्र को बढ़ाया॥
इस दिन को मनाएं हर समाज के भाई।
करें अर्चना पूजा, बांटे फल-फूल मिठाई॥
समस्त समाज बंधुओं की विनती करें स्वीकार।
अजमीढ़ देव ही करेंगे, हम सब की नैया पार॥
सेवा निरन्तर की अपने प्रजा की॥
महाराज हस्तीजी के घर जाए।
हस्तीनापुर के जनक गए बनाए॥
शरद पूर्णिमा का दिन भाग्यशाली।
मां सुदेशा के घर आयी खुशहाली॥
यशोधरा से जन्मे द्विमीढ़ पुरुमीढ़ भाई।
मैढ़ क्षत्रिय वंश की स्वर्ण ध्वजा लहराई॥
स्वर्णकारी कला का शुरु किया काम।
जिससे गौरवान्वित हुआ समाज का नाम॥
अजयमेरु में एक नगर बसाया।
स्वर्ण बंधुओं के कार्य क्षेत्र को बढ़ाया॥
इस दिन को मनाएं हर समाज के भाई।
करें अर्चना पूजा, बांटे फल-फूल मिठाई॥
समस्त समाज बंधुओं की विनती करें स्वीकार।
अजमीढ़ देव ही करेंगे, हम सब की नैया पार॥
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